Saturday, March 14, 2009

मजदूर जगत, इस ब्लॉग को बनाने के पीछे हम लोगो की मंशा केवल यह है की, हम मजदूरों की आवाज़ को भी इस वेब दुनिया के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचा सकेंबुन्देलखण्ड दो राज्यों के १४ जनपदों के क्षेत्र को कहते है । बुन्देलखण्ड अपने आप में एक राज्य के सभी सुविधाओं से परिपूर्ण है , हमारे कहने का तात्पर्य यह है की, यहाँ पर बहुतायत में खनिज संपदा उपलब्ध है , कृषि पैदावार भी आवशयकता से अधिक ही है जबकि पानी के संकट से बुन्देलखण्ड जूझ रहा है । लेकिन यहाँ के दूरदर्शी और प्रयोग धर्मी किसानों ने अनाजों की ऐसी किस्म विकसित किया की, पानी के ऊपर से निर्भरता कृषि में कम हो गयी । पीने का पानी का संकट वर्ष के जादातर महीनों में जरूर बना रहता है । स्वक्छ पेय जल के लिए बुन्देलखण्ड जरूर तरसता है ।

बुन्देलखण्ड के इस खनिज सम्पदा के दोहन के लिए हजारों की संख्या में खुली व बंद खदानें है इन खदानों से हीरा , ग्रेनाईट , चूना पत्थर, सिलिका, मोरंग, बालू आदि निकाला जाता है । इन खदानों में अधिकतर काम मजदूरों द्वारा किया जाता है। जिसकी वजह से बुन्देलखण्ड में खदान मजदूरों की संख्या कई लाखों में है । इन मजदूरों की कुल कितनी संख्या है या कितने परिवार खनन कार्य में लगे हुएं है यह बता पाना मुश्किल है क्यूंकि, यहाँ के खदानों में इनकी स्थिति दैनिक मजदूरों जैसी होती है और कोई भी खदान मालिक इन्हे अपने खदान का अंशकालिक या पूर्णकालिक मजदूरों का दर्जा नही देता है । जिसकी वजह से इन मजदूरों की सामाजिक लाभ, स्वस्थ्य व अन्य किसी भी जिम्मेदारी के लिए खदान मालिक जिम्मेदार नही होते है, इन्हे दैनिक मजदूर बनाए रखने के पीछे भी शायद यही मंशा है उन खदान मालिकों की ।
खदान चाहे जिस खनिज की हो कुछ चीजें समान है सभी खदानों में जैसे - फेफड़े की बीमारिया, आँखों की बीमारिया और महिला मजदूरों के साथ शारीरिक व यौन शोषण । यह काला सच है बुन्देलखण्ड की खदानों का ।


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