Sunday, March 15, 2009

खदान मजदूरों का जीवन

खदान मजदूरों का जीवन
एक खदान मजदूर और उसके परिवार का जीवन क्या होता है, कैसे होता है ? इसको जानने समझने के लिए जबहम लोग एक खदान पर पहुंचे तो आँखे खुली की खुली रह गयी छतरपुर जनपद का नौगाँव तहसील है, जहाँ परकई खदानें और क्रेशर है नौगाँव कस्बे से कुछ किलोमीटर आगे दौरिया गाँव के पास के एक खदान पर हम लोगपहुंचे २३ नवम्बर २००८ को वहाँ पर हम लोगों ने जो देखा और बातचीत के बाद जो सुना वो दिल को दहला देनेवाला था वह खदान एक खुली खदान है मतलब एक काफ़ी बड़ा पहाड़ है और पहाड़ के ठीक नीचे एक काफी बड़ातालाब है पहाड़ के ऊपर मन्दिर और पहाड़ के नीचे तालाब यह पहचान है बुन्देलखण्ड की। बुन्देलखण्ड के तालाबऔर पहाड़ बुन्देलखण्ड के जीवन के श्रोत है बुजुर्ग जनों ने बताया की पहले बुन्देलखण्ड वनाच्छादित था सारेपहाड़ हरे भरे और तालाब लबालब्ब भरे हुए रहते थे, जिससे पूरे वर्ष की पानी की जरूरत पूरी होती थे लेकिन जबसे वनों की कटाई और पहाडों की खुदाई शुरू हुई तब से बुन्देलखण्ड के आँख से आंसू भी सूख गए दौरिया के उसखदान पर ६० से अधिक मजदूर काम कर रहे थे और उनमे से अधिकतर महिलायें थी महिलाओं के साथ उनकेबच्चे भी खदान पर मौजूद थे वह भी काम करते देखे गए हम लोगों की जोड़ी आँखों के द्वारा। खदान पर जब हमलोगों ने कुछ चित्र खीचने का प्रयास किया तो खदान पर मौजूद मुंशी (मजदूरी आदि का हिसाब किताब रखने वालाने हम लोगों को धमकाते हुए कहा की यहाँ चित्र खीचना मना है और आप मत खिचिये वरना मैं अपने मालिक कोफ़ोन करके बुलाऊंगा और मेरे मालिक आपके कैमरे का बाजा बजा देंगे हम लोगों के समझाने पर भी वह नहीमाना और अंततः उसने फ़ोन करके अपने मालिक को बुला लिया खदान मालिक एक खुली जीप में हथियारों सेलैस हो करके पहुँचा लेकिन पहुंचाते ही उसके कदम कुछ ठिठके , मुझे नही समझ में आया की ऐसा क्यों हुआलेकिन थोडी देर बाद तस्वीर साफ़ हुई की हमारे साथ एक सज्जन जो की बुन्देलखण्ड में सामाजिक कार्यो में लगेरहते है वह उनके सामाजिक कार्यों की वजह से पहचानता था जिसकी वजह से उसके कदम ठिठके थे खदानमालिक ने बुरा सा मुहँ बनते हुए बोला भाई साहेब यह क्या है मेरे ही पेट पर लात मार रहे है आप आप आए मेरेखदान पर अच्छा किया अब एक काम और कर दीजिये, इस कैमरे की कीमत आप मुझसे ले लीजिये और मुझे देदीजिये मुझे मसखरी सूझी लेकिन अन्दर से डर भी सता रहा था की कही मारपीट पर यह उतारू हो गया तो क्याहोगा , लेकिन फ़िर भी अपने डर को दबाते हुए कह ही दिया की इस कैमरे की कीमत तो आप यह पूरा पहाड़ भीखोद कर बेच कर चुका पाओगे क्योंकि यह कैमरा अब केवल कैमरा था इसके अन्दर जो चित्र थे वह अपनेआप मे कहानी कहने वाले थे सचमुच बोलते हुए चित्र उन चित्रों मे कहानी थी उन महिलाओं की जो वहा परकाम कर रही थी बिना किसी सुरक्छा के, उन चित्रों मे कहानी थी वहा पर काम करने वाले उन बच्चो की जो पढ़नेके बजाय एक खतरनाक जगह पर काम कर रहे थे, उन चित्रों मे कहानी थी उन बुजुर्ग मजदूरों की जिनके फेफडों नेबुढापे मे उनका साथ छोड़ने की तैयारी कर ली थी अब जब किसी कैमरे मे इतना कुछ हो तो कौन उसकी बोलीलगा करके खरीद सकता है अंततः एक घंटा बहस मे बिताने के बाद तय हुआ की ठीक है आप ने जो चित्र खीचचुके ) है उनका इस्तेमाल आप कही छापने आदि मे नही करेंगे और अब कोई और चित्र नही खिचेंगे इस बात कीजिम्मेदारी ली हमारे स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता मित्र ने और हम लोगों ने वापसी की राह पकड़ी कुछ दबे मन सेलेकिन मन को संतोष दिलाते हुए की कुछ चित्र तो हम लोगों ने खीच ही लिया है कुछ लोगों से बातचीत करकेउनके बारे मे जान भी लिया है लेकिन हमारी मंशा तो केवल चित्र खीचने या चार बातें कराने की तो थी नही जोकरना था वह तो कर ही नही पाये सचमुच बहुत कठिन हो गया था उस रात सो पाना भी फ़िर भी किसी तरहपूरी रात बिस्तर पर खर्च करके सुबह सूरज के साथ बिस्तर छोड़ दिया हम सभी लोगोने लेकिन दिमाग मे अभीभी खुजली मची हुई थी की आगे की कहानी कैसे पूरी की जायेगी तय हुआ की आज सूरज डूबने के बाद उस गाँवमे चलते है जहाँ पर यह सारे मजदूर साथी रहते है पूरा दिन पिछले दिन के समालोचना मे बीत गया शाम कोहम लोग दबे पावं उस गाँव मे पहुंचे जहा पर सारे मजदूर साथी पूरा दिन पत्थरों के साथ बिताने के बाद आरामकरने खाने सोने के लिए आते है वहा पहुँच कर तो सर ही चकरा गया चूल्हे मे जलती आग की रौशनी केअलांवा और भी कोई रौशनी नज़र नही रही थी पता नही वह महिलाएं कैसे भोजन पका रही थी अंधेरे मे कुछ लोग एक नाबालिग़ नीम के पेड़ के नीचे चीलम का आनंद लेते हुए मिल गए उन लोगों से जब शिस्टाचारनिभाने के बाद कुछ बातचीत शुरू हुई तो वह सारे लोग अंधेरे मे एक दूसरे के चेहरों का भाव पढ़ने का असफलप्रयास कर रहे थे कुछ बात बनते हुए देख करके हमारे मित्र ने आत्मीयता बढ़ाने की नियत से आखिरी दावंखेला "दद्दा अरे हमन को भी एकाध फूंक लगवाओगे का" चिलम का कश खीचने के बाद सीने और सिर मे जोहलचल हुई की कुछ पलों के लिए तो भूमंडल घूम गया उन मित्र महोदय का फ़िर ख़ुद को संभालते हुए उन लोगों केसाथ बातचीत शुरू की उन मित्र ने अपनी मातृभाषा बुन्देली का सहारा लेते हुए बातचीत मे उन लोगों ने बतायाकी खदान मालिक ने आप लोगों से बातचीत करने के लिए मना किया है लेकिन आप लोग तो अपने मित्र जानपड़ते है इसलिए बात कर रहे है उनलोगों के साथ उस रात की बातचीत का सार मैं आपलोगों को बता रहा हूँ उनलोगों ने बताया की हम लोगों को दिहाड़ी के हिसाब से पैसा नही मिलता है हम लोगों को प्रति ट्राली भुगतान कियाजाता है एक ट्राली भरने मे जितने भी लोग काम करते है उनमे वह पैसा बराबर बराबर बांटा जाता है हम लोगोंको काम करते हुए यदि कभी चोट लग जाती है तो ख़ुद से दवा आदि कराना होता है, और जितने दिन काम से नागाहोगा उतने दिनों का कोई पैसा नही मिलेगा छोटी मोटी चोट तो रोज़ ही लगती रहती है। चूंकि दिहाड़ी नही मिलतीहै इसलिए पूरा परिवार एक साथ काम करता है जिसमे बच्चे भी शामिल रहते है क्योंकि उनको घर मे मतलबगाँव मे किसके भरोसे छोडे। जिन घरों मे बड़ी लड़किया ( -१३ वर्ष) है उनके घरों के छोटे बच्चे जरूर गाँव मे रहतेहै यह गाँव जहाँ पर हम लोग बैठे हुए थे यह एक छोटी से बस्ती थी गाँव का एहसास दिलाते हुए जहा पर सभीलोग झोपड़े मे रहते है, सौंच के लिए खुली जगह का इस्तेमाल करते है खदान मे काम करते हुए इन्हे किसीभीप्रकार का कोई भी सुरक्छा का सामान नही दिया जाता है जैसे - हाथ मे पहने जाने वाला दस्ताना, मुहँ को ढकने केलिए मास्क , सर पर पहना जाने वाला हेलमेट और जूता इनमे से कोई भी वस्तु इन लोगों को नही दी जाती हैऔर यह लोग काम करते है ग्रेनाईट पत्थर के खदान मे आख़िर इनके स्वस्थ्य के साथ होने वाले खिलवाड़ केसाथ जिम्मेदार कौन है ? मैंने सुना है की सरकार का एक विभाग है जो खदान मे काम करने वाले लोगों के लियासुरक्छा का इंतजाम सुनिस्चित कराता है लेकिन शायद उस विभाग को बुन्देलखण्ड नज़र नही आता क्यूंकि पूरेबुन्देलखण्ड मे कही भी किसी भी खदान मे सुरक्छा का इन्तेजाम नही है और अक्सर कुसमय ब्लास्टिंग की वजहसे जान माल की हानि होती है यह बातें केवल नौगाँव मे स्थित उस खदान की नही है यह स्थिति पूरे बुन्देलखण्डमे एक जैसी है
प्रशांत भगत के साथ के. के. चतुर्वेदी

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